क्रोध से सभी परिचित है किसी – किसी को क्रोध इतना तेज आता है की बाद में वह स्वयं पर शर्मिंदा होता है | हर कोई अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहता है , लेकिन क्रोध आने पर नियन्त्रण करना तो दूर की बात , वह कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं रहता | इसलिए तो कहते है की क्रोध का अंत पछतावे पर होता है | क्रोध आने पर व्यक्ति के बनते हुए काम भी बिगड़ जाते है | क्रोध की भीषण स्थिति में किसी का कुछ भला नही होता ,केवल व्यक्ति के अहंकार की पुष्टि होती है ,वह दुसरो पर अपना रौब झाड़ता है ,अपने बल का प्रदर्शन करता है और यदि व्यक्ति क्रोध की स्थिति में कुछ कर नहीं पाता , तो स्वयं का ही नुकसान करता है |
क्रोध हर व्यक्ति की शारीरिक व् मानसिक सेहत के लिए बहुत नुकसान दायक है | कभी –कभी यह रिश्तो के टूटने का कारण बनता है ,जब हम क्रोध को समझ नहीं पाते ,तो अक्सर निकटवर्ती लोगो को सर्वाधिक दुःख पहुंचाते है | क्रोध के दौरान मुख्य रूप से तीन बाते साथ होती है पहली बात यह है की क्रोध एक भावना है | दूसरी बात क्रोध एक व्यवहार की श्रंखला है और तीसरी बात क्रोध विचारों की श्रुंखला है |
क्रोध के मनोविज्ञान को समझने के लिए एक बहुत रुचिकर प्रसंग सूफी जुन्नैद के जीवन से संबधित है | जुन्नैद बहुत ही शांत स्वभाव के थे अकसर लोग उनके पास अपनी समस्याओ के समाधान के लिए आया करते थे | उनके पास आने वालो में कुछ तो बेहद गुस्से में आते और कहते – “ जिस शख्स के कारण मैं गुस्से में हूँ , उसे सबक सिखाने का कोई नुस्खा जल्दी से बता दीजिये , ताकि आगे से वह मेरे साथ वैसी हरकत न करे | “ जुन्नैद उसे पहले शांत करने की कोशिश करते , लेकिन जब उनका गुस्सा कम नहीं होता , तो जुन्नैद मुस्कुराते और कहते – “ मैं तुम्हे क्रोध करने को मना नहीं करता हूँ , बल्कि यह कहता हूँ की तुम आराम से गुस्सा करना , पर २४ घंटे बाद करना |” अगले दिन जब लोग उनके पास आते तो वास्तव में उनका गुस्सा शांत हो गया होता था |
एक दिन जुन्नैद से उनके शिष्य ने पूछा – “ आखिर क्रोध करने वाले इन लोगो को आप २४ घंटे का ही समय क्यों देते हो ? उसे उसी समय अपनी बात कहने का मौका क्यों नहीं देते ? जुन्नैद बोले – बेटा ! क्रोध के आवेश अगर तुरंत जवाब दिया जाय तो आदमी बेकाबू हो जाता है वह दोस्ती ,रिश्ते नाते सब भूला देता है उस समय उसे कुछ भी समझा पाना सम्भव नहीं होता |” इस पर शिष्य बोला – “ फिर २४ घंटे का ही वक्त क्यों ? दो तीन दिन का समय क्यों नहीं ? इसका जवाब देते हुए बोले – २४ घंटे तक का ही लगातार कोई भी गुस्से में नहीं रह सकता , इस दौरान उसे अपने आप अपनी गलती का अहसास होने लगता है | वही दो-तीन दिनो तक वह अपने कामो में व्यस्त हो जाता है ,और अपनी गलती भूल जाता है | इसलिए २४ घंटे के अन्दर कोई भी व्यक्ति अगर अपने गुस्से के बारे में सोच ले , तो वह उसे न सिर्फ काबू कर सकता ,बल्कि दुसरो को भी उनकी गलती का एहसास करा सकता है |
भगवान बुध्द भी अपने शिष्यों को क्रोध न करके अधिक से अधिक शांत रहने का पाठ पढ़ाते थे | एक बार गौतम बुध्द अपने शिष्यों के साथ एकदम शांत बैठे हुए थे उन्हें इस तरह बैठे हुए देखकर उनके शिष्य चिंतित हो गए की कही अस्वस्थ तो नहीं | एक शिष्य ने उनसे पुछ लिया – “ आज आप इस तरह मौन क्यों है ? इसी बीच एक अन्य शिष्य ने उनसे पूछा “ क्या आप अस्वस्थ है ? पर बुध्द ने कुछ भी जवाब नहीं दिया , मौन रहे | इससे शिष्यों में चिंता बढ़ गई | सभी अपने –अपने हिसाब से सोचने लगे की बुध्द के मौन होने की क्या वजह हो सकती है | थोड़ी देर बाद कुछ दूर पर खड़ा एक व्यक्ति जोर से चिल्लाया – “ आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई ? सभी चोंककर उसकी ओर देखने लगे |
इस सबसे अप्रभावित भगवान बुध्द ध्यानमग्न बैठे रहे | वह व्यक्ति फिर से उसी तरह चिल्लाया - “ आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई ? इस बीच एक उदार शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा की उसे सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाय | बुध्द ने आँखे खोली और बोले “ नहीं , वह अस्पृश्य है , उसे आज्ञा नहीं दी जा सकती “ यह सुनकर सभी शिष्यों को आश्चर्य हुआ | बुध्द उनके
मन का भाव समझ गये और बोले – “ हाँ , वह अस्पृश्य है “ इस पर कई शिष्य एक साथ ख उठे – “ पर हमारे धर्म में तो जात –पात का कोई भेद नहीं , फिर वह अस्पृश्य कैसे हो गया ? तब बुध्द ने स्पष्ट किया – “ आज वह क्रोधित होकर आया है | क्रोध से जीवन की एकता भंग होती है | क्रोधी व्यक्ति मानसिक हिंसा करता है , इसलिए वह अस्पृश्य है | उसे कुछ समय एकांत में ही खड़ा रहना चाहिए पश्चाताप की अग्नि में तपकर वह समझ लेगा की अहिंसा ही परम धर्म है |
यह सुनकर वह व्यक्ति भगवान बुध्द के चरणों में गिर गया और कभी क्रोध न करने की शपथ ली |
हमे भी क्रोध आने पर मौन एवं एकांत का सहारा लेना चाहिए ,अन्यथा इस अवस्था में किसी का भी , कुछ भी अहित हो सकता है | क्रोध मन की अवस्था का एक उफान है , जिससे हमारी ऊर्जा का बहुत नुकसान होता है जैसे दूध उबलने पर उसकी मलाई बर्तन से बाहर गिर जाती है , ठीक उसी प्रकार क्रोध की अवस्था में हम अपनी ऊर्जा को अन्य परीस्थिती की तुलना में अधिक गवाहते है | इसलिए अपने क्रोध पर नियंत्रण करके शांत रहना सीखना चाहिए, अन्यथा समय बीत जाने पर पछताने के अतिरिक्त और कुछ भी साथ नही रहता |
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