विदेशी कंपनियों का भारतीय संस्कृति पर आघात
हमारे भारत देश में अनेक विदेशी कंपनिया अपने उत्पादन बेच कर हमारे देश की आर्थिक स्थिति पर बड़ा प्रभाव डाल रही है जिसके कारण हमारा विदेश व्यापार घाटा बढता जा रहा है विदेश घाटा का तात्पर्य है की किसी देश में हम किन्ही वस्तुओ का आयात करते है तो इसमें जो राशी लगी उसकी तुलना में उसी देश को उसी देश को जब अपने देश से वस्तुओ को निर्यात करते है तो उसकी कुल राशी ,इन दोनों की तुलना करते है तो जिस देश को घाटा हुआ वह उस देश का सम्बंधित देश के साथ व्यापार घाटा कहलाता है | आज भारत सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन के साथ है जो वार्षिक ४० अरब डॉलर का है |
विदेशी निवेशक भारत में उधम लगाकर जो कुछ वे अपने उत्पादों व् ब्रांडो का उत्पादन हमारे यहाँ कर रहे है इसके सांस्कृतिक दुष्प्रभाव भी हमारे देश पर भारी पड़ रहा है | उदाहरण के लिए – कोरिया की भारत में कार्यरत एक कंपनी ने कुछ वर्ष उसके कर्मचारयो को यह आदेश दिया की उनके यहाँ आफिशियल ड्रेस ‘ स्कर्ट ‘ है और इसलिए उन्हें साड़ी या सलवार सूट की जगह पर स्कर्ट पहन कर आना है | बहुत सारी महिलाये ऐसी भी होती है जो घर से स्कर्ट पहन के नहीं जाती तो वहा चेंजिंग रूम में जाकर बदलती है जब यह प्रावधान लागु किया था तो कई महिला संघटनो ने इसका विरोध किया तब कंपनी ने लिखित में इसकी अनिवार्यता तो समाप्त कर दिया पर उनका परोक्ष सन्देश यही रहता ही है की अगर हमारी कंपनी में प्रोमोशन लेने है तो उनकी आफिशियल ड्रेस कोड को भी प्राथमिकता देनी होगी | इस प्रकार जब देश का उत्पादन तन्त्र विदेशी नियंत्रण में हो जाता है ,तब संस्कृति भी विदेशी ही आरोपित करते है |
आज जब देश का उत्पादन तंत्र विदेशी नियंत्रण में जा रहा है , तो वे संस्कृति को भी अपने ढंग से परिवर्तित करने के भी प्रयास कर रहे है हमारे देश में रेडीमेड फूड का चलन नहीं है अधिकांश लोग संयुक्त परिवार में रहते है इसलिए आहार घर में ही तैयार हो जाते है जबकि पश्चिमी देशो में परिवारों में विघटन के कारण परिवार के अधिकांश सदस्य को अपना भोजन स्वयं तैयार करने की विवशता के कारण रेडीमेड फूड खरीदने पड़ते है इसलिए वहां रेडीमेड फूड का चलन ज्यादा है इसी प्रकार संयुक्त परिवार में साथ में रहने व् सामूहिकता के कारण अपने देश में एक टी .वी . व् एक फ्रिज से पुरे परिवार का काम चल जाता है जबकि पाश्चात्य देशो में परिवार में व्यक्तिवाद के कारण परिवार का प्रत्येक सदस्य उसके कमरे में उसका अपना टी .वी . या फ़िज़ रखना पसंद करता है इसलिए कुछ विदेशी निवेशको का मानना है की देश में परिवारों में अलगावाद का बिजोरोपन होने से रेडीमेड फूड व् उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओ की बिक्री में तीव्रता से वृधि हो सकती है |
विदेशी निवेश से बचते हुए ,जब तक हम स्वदेशी का अनुसरण नहीं करेंगे ,तो हमारी संस्कृति , हमारा परिवार . हमारा अर्थतंत्र , हमारी भोजन ,वेश भूषा , भाषा ये सारी विदेशी प्रभाव में जार रही है | आज हम विज्ञापनों , टीवी सीरियल्स आदि के विदेशी प्रभावों को समझ नहीं पा रहे है और हमारी पुष्ट संस्कृति के ह्रास को महसूस नहीं कर रहे है यदि हमारी संस्कृति को बचाना है तो हमारे पास एक मात्र विकल्प बचता है ’ स्वदेशी ‘ | स्वदेशी उत्पादनों का अधिकाधिक प्रयोग से विदेशी कंपनियों के पैर उखाड़ सकते है , स्वदेशी विचार,व्यवहार और स्वदेशी जीवन यदि हम बरकरार रख सके तभी हम भारतीय संस्कृति को बचा सकते है |
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