अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय से होगा देश का विकास
प्रसिद्ध वैज्ञानिक बर्टन रसेल के अनुसार यदि दुनिया को बचाना है तो हमें शांति अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय के रास्ते पर चलाना होगा क्योकि अध्यात्म के बिना विज्ञान अँधा है और विज्ञान के बिना अध्यात्म लंगड़ा | दोनों के समन्वयात्मक शोध कार्यो से ही मानव का कल्याण संभव है, हम केवल भौतिकवादी सुखो की ओर अंधानुकरण कर न दोड़े बल्कि अध्यात्मवादी ,मानवतावादी एवं सवेदनशील जीवन जीने का लक्ष्य बनाए क्योकि ये दोनों एक दुसरे के पूरक है न की विरोधी |
ज्ञान की विशेष धारा का नाम ही विज्ञान है ज्ञान ही अपने आप में शक्ति है | जिसके पास ज्ञान है वह अपने बुध्दि बल के आधार पर शक्तिशाली कहलाता है | विज्ञान जो की ज्ञान से ही एक विशेष स्तर एवं विशेष दिशा में प्रयोग के आधार पर अर्जित किया जाता है, निशिचत रूप से अधिक शक्तिशाली है |
विज्ञान के अंतर्गत भोतिक ,रसायन एवं जीवविज्ञान तथा कृषि चिकित्सा भूगर्भ विज्ञान आदि कई शाखाएँ आती है वैज्ञानिक भी एक ऋषि से कम त्याग एवं तप नही करता रात –दिन किसी चिंतन ,मनन एवं प्रयोग के सहारे वे नये नये खोज करने में सफल होते है | आज तो संसार परिवहन चिकिसा अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रो में विज्ञान ने बहुत चमत्कारी प्रगति की है | विज्ञान ने मानवजाती के लिए जो सुख सुविधाए जुटाई है उनसे विशव में लोगो को प्रत्येक कार्य में बहुत राहत मिली है | विज्ञान ने आज युद्ध के क्षेत्रो में इतने हथिहार और परमाणु बम बना लिये है की यदि कोई देश इनका दुरूपयोग कर ले तो पूरा विश्व ही नष्ट हो जायगा |
जापान में हिरोशिमा एवं नागासाकी पर बम के विस्फोट की दर्दनाक घटना के बाद अलबर्ट आइन्स्टीन ने कहा की मैंने परमाणु बम बनाकर अच्छा नही किया | यही सोच अध्यात्म का महत्व उजागर करती है |
अध्यात्म केवल पाठ या कर्मकाण्ड नहीं ,यह तो उसके बहुत निचे के स्तर के साधन है | वस्तुत; श्रेष्ठतम चिंतन उत्कृष्ट चरित्र एवं आदर्श व्यवहार ही अध्यात्म की पहचान हैं, विज्ञान एवं अध्यात्म एक दुसरे के पूरक है |
विज्ञान अध्यात्म के विना अंधा है एवं अध्यात्म विज्ञान के बिना लंगड़ा है | दोनों के समन्वय के बिना जीवन की गति एवं प्रगति दोनों ही बाधित हो जायगी | अंधे लंगड़े की कहानी प्रसिद्ध है जिसमे वे दोनो मिल कर ही नदी पार करते है | इसी तरह विज्ञान साधन देता है और अध्यात्म रास्ता बताता है |
एक अध्यात्मिक व्यक्ति की पहचान उसके विचार संयम ,समय संयम ,इन्द्रिय संयम और अर्थ संयम के मन्त्रो को जीवन में धारण करने से है जो उसे शील ,समर्थ और साहसी बनाता है |
दुर्बल मानसिकता का व्यक्ति न तो वैज्ञानिक हो सकता है और न ही अध्यात्मिक | दोनों में आत्म बल और आस्तिकता की जरुरत होती है | एक बार श्री सी .वी . रमन से कुछ लोग मिलने गये उस समय वो पूजा कक्ष में जप एवं ध्यान कर रहे थे | उनसे पूछा गया की आप इतने बड़े वैज्ञानिक है आप तो सब जानते है फिर भी यह क्या कर रहे है ? तो उन्होंने कहा की जो यह जानता है की वह विश्व ब्रहमाण्ड की तुलना में कितना कम जानता है , वही सही जानता है वैज्ञानिक जितना जान पाता है उससे कई गुना अधिक जानना शेष रह जाता है जबकि अध्यात्मिक व्यक्ति अपनी अन्त : चेतना को परमात्म चेतना से जोडकर सब कुछ जान लेने की क्षमता रखता है |
[…] आध्यात्मिक ज्ञान ही माना जाता है इस आध्यात्मिक ज्ञान से ही परमानंद की प्राप्ति होती है […]
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